भारतीय क्रिकेट के इतिहास का वो काला दौर जब टीम इंडिया के कोच को पद से हटाने के लिए दर्शकों तक को बीच मैदान में आना पड़ा था। यहां तक कि संसद तक में भी इस विवाद को लेकर काफी चर्चा हुई।
क्या था पूरा विवाद ?:
कहते है कि आपका एक फैसला आपका पूरा कैरियर बर्बाद कर सकता है। और यही हुआ था भारतीय टीम के पूर्व और उस समय के सबसे सफल कप्तान सौरव गांगुली के साथ।
बात साल 2005 की है जब उस समय के भारतीय टीम के सबसे सफल कोच रहे जॉन राइट का कोच पद का कार्यकाल समाप्त हो गया था और उन्होंने निजी कारणों के चलते अपना कार्यकाल बढ़ाने से इंकार कर दिया था और नये कोच की तलाश में टॉम मूडी, डेव व्हाटमोड़, डेसमंड हेन्स, जॉन ऐम्बुरी, ग्रेग चैपल और भारतीय मूल के महिंदर अमरनाथ रेस में थे। लेकिन टीम इंडिया के नए कोच चुने गए ऑस्ट्रेलिया के पूर्व खिलाड़ी ग्रेग चैपल। सबसे दिलचस्प बात ये थी कि ग्रेग चैपल को कोच नियुक्त करने में सबसे अहम भूमिका कप्तान सौरव गांगुली की थी। सौरव को बतौर कप्तान ग्रेग चैपल ही चाहिए थे क्योंकि जब भारतीय टीम 2003-04 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गयी थी तब ग्रेग चैपल के साथ गांगुली के अच्छे संबंध बन गए थे और चैपल ने गांगुली को बल्लेबाज़ी के काफी टिप्स भी बताए थे। इसीलिए सौरव गांगुली ने बोर्ड को हर हाल मनाने की कोशिश की और आखिर कोचिंग का कोई खास अनुभव न होने के बावजूद भी ग्रेग चैपल को टीम इंडिया का नया कोच नियुक्त किया गया।
क्या था गांगुली चैपल विवाद ? :
कोच बनते ही ग्रेग चैपल के तेवर बदलने लगे और उनके 2 साल का कार्यकाल भारतीय क्रिकेट के इतिहास का काला अध्यय बन गया। दरअसल इन दोनों के बीच विवाद शुरू हुआ था भारतीय टीम के जिम्बाब्वे दौरे से। क्योंकि कोच ग्रेग चैपल के अंडर टीम इंडिया ने अपनी पहली सीरीज़ श्री लंका में खेली जिसमें इंडिया, श्रीलंका और वेस्टइंडीज की टीमों के बीच इंडियन ऑयल कप त्रिकोणीय श्रखंला चल रही थी। धीमी ओवर रेट के चलते गांगुली पर 6 मैचों का बैन था इसीलिए टीम इंडिया की कप्तानी का जिम्मा कोच ग्रेग चैपल द्वारा राहुल द्रविड़ को दे दिया गया था। इस श्रृंखला का फाइनल मैच भारतीय टीम श्री लंका से 18 रनों से हार गई थी। लेकिन जैसे ही टीम इंडिया अपने अगले दौरे के लिए जिम्बाब्वे पहुंची तो वहां ग्रेग चैपल ने गांगुली से बात करके कप्तानी छोड़कर अपनी बल्लेबाज़ी पर ध्यान केंद्रित करने का मशवरा दे डाला। उस समय सौरव गांगुली बल्लेबाज़ी में ख़राब फॉर्म से गुज़र रहे थे और पिछले 2 साल से उनके बल्ले से एक भी शतक नहीं आया थ। दरअसल ग्रेग चैपल चाहते थे कि युवराज सिंह और मुहम्मद कैफ़ जैसे नए खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा मौका दिया जाए। बस यहीं से दोनों के बीच तकरार शुरू हो गई। सौरव गांगुली को ग्रेग चैपल की ये बात नागवार गुजरी और उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिना हिचक कह दिया कि कोच ग्रेग चैपल उन पर कप्तानी छोड़ने का दबाव बना रहे हैं। बस फिर क्या था ? दोनों के बीच विवाद बढ़ने लगा। दोनों के बीच हुई बातें भी सार्वजनिक होने लगी । पर इससे ग्रेग चैपल को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। गांगुली को चैपल के सामने अपना कद काफी छोटा दिखने लगा था और चैपल अपने आपको बड़ा बनने की कोशिश कर रहे थे। बस यही बात गांगुली को पसंद नहीं थी। उस श्रृंखला का पहला मैच शुरू होने से पहले चैपल ने कहा कि हमें जिम्बाब्वे के खिलाफ अपनी मजबूत टीम उतारनी होगी क्योंकि पहला मैच जीतने बहुत जरूरी है। इस लिए उन्होंने गांगुली को प्लेइंग 11 से बाहर कर युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ को प्लेइंग 11 में ले लिया। इस बात से तो जैसे सौरव गांगुली को अंदर तक हिला कर रख दिया। उन्होंने इस श्रृंखला को बीच में छोड़कर इंडिया वापिस आने का फैसला कर अपना सामान बांधना शुरू कर दिया। चैपल और टीम मैनेजमेंट ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी और माहौल बिगड़ता देख मोहम्मद कैफ की जगह गांगुली को वापिस प्लेइंग 11 में रखा गया। हालांकि मैच के दौरान गांगुली को कई बार इंजरी का सामना करना पड़ा। जिसे बाद में ग्रेग चैपल ने आरोप भी लगाया कि गांगुली बार बार चोट बहाना बना रहे हैं।
चैपल की ये बातों से सौरव गांगुली की बर्दाश्त के बाहर होती जा रही थी। अतः एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यह तक कह डाला कि कोच ग्रेग चैपल उनपर कप्तानी छोड़ने का दबाव बना रहे हैं। बाद में सचिन तेंदुलकर और बाकी दिग्गज खिलाड़ियों ने सौरव गांगुली को ड्रेसिंग रूम की बातों को सार्वजनिक न करने की सलाह दी और ग्रेग चैपल ने भी इन बातों को नकारते हुए कहा कि उन्होंने केवल सौरव गांगुली को बल्लेबाजी पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी थी। हालांकि जिंबॉब्वे दौर खत्म होते होते कोच ग्रेग चैपल की एक ऐसी ई-मेल लीक हुई जिसने भारतीय क्रिकेट के इतिहास में तहलका मचा दिया था। चैपल ने उस ई-मेल में Board of Control for Cricket in India (BCCI) को लिखा कि सौरव गांगुली का Attitude बहुत नेगेटिव हो चुका है और शारीरिक रूप से फिट न होने के कारण वो मानसिक तौर पर भी अनफिट हो गए हैं। इसलिए उनका कप्तान बने रहना 2007 के विश्वकप कप को जीतने के सपने को तोड़ सकता है। इस ई-मेल के सार्वजनिक होने पर देशभर में चैपल का काफी विरोध देखने को मिला और कलकत्ता की सड़कों पर भी चैपल के ख़िलाफ़ काफी नाराजगी दर्शाई गई। इन सब बातों पर BCCI की भी नज़र थी। इसीलिए BCCI ने मुम्बई में हुई एक बैठक में दोनों के बीच चल रहे झगड़े को सुलझाया और दोनो ने भविष्य में एकसाथ काम करने का प्रण लिया।
भारतीय दर्शकों ने किया दक्षिण अफ्रीका टीम को सपोर्ट:
मुम्बई में ही मीटिंग के बाद बेशक चैपल और गांगुली के बीच एकसाथ काम करने का समझौता हो गया था। परन्तु चैपल अपने मन में अभी भी गांगुली के लिए वही भावना रखकर चल रहे थे। क्योंकि 2005 में भारत बनाम श्री लंका के बीच सात एकदिवसीय मैचों की द्विपक्षीय श्रृंखला होनी थी। उस श्रृंखला में सौरव गांगुली चोट के चलते पहले 4 मैचों का हिस्सा नहीं बन पाए और राहुल द्रविड़ की कप्तानी में भारतीय टीम ने पहले 4 मैच जीतकर श्रृंखला में 4-0 की अजेय बढ़त बना ली थी। इस श्रृंखला में युवराज सिंह का बल्ला ख़ूब रन बटोर रहा था। 4 मैचों के बाद जब गांगुली वापिस आये तो चैपल ने उन्हें अगले 3 मैचों से भी दूर रखने का फ़ैसला किया। उस श्रृंखला को टीम इंडिया ने 6-1 से अपने नाम कर लिया। इसके तुरंत बाद दक्षिण अफ्रीका की टीम एकदिवसीय श्रृंखला खेलने भारत आई। लेकिन इस श्रृंखला में भी सौरव गांगुली का नाम नहीं था। फिर क्या था ? देशभर में चैपल के खिलाफ लोगों की नाराजगी और भी बढ़ने लगी। सीरीज़ का चौथा मैच खेलने के लिए जब टीम इंडिया कोलकाता के ईडन गार्डन पहुंची तो लोगों ने चैपल को देखते ही उसके ख़िलाफ़ बयानबाज़ी शुरू कर दी। दर्शकों की इस हरकत से ग्रेग चैपल भड़क गए औए उन्होंने भारतीय दर्शकों को मिडल फिंगर दिखा दी । कहते हैं कि दर्शकों कि सपोर्ट के बिना आप कभी आगे नहीं बढ़ सकते। बस यहां यही गलती कर बैठे कोच ग्रेग चैपल। दरअसल कोच चैपल अपने आप को टीम इंडिया का मसीहा समझ बैठे थे। लेकिन दर्शकों को उनकी ये हरकत नागवार गुजरी। उन्होंने चौथे एकदिवसीय मैच में टीम इंडिया की बजाए दक्षिण अफ्रीकी टीम को सपोर्ट करना शुरू कर दिया। मैदान पर दक्षिणी अफ्रीकी टीम के नाम के नारे गूँज रहे थे। दक्षिण अफ्रीका टीम ने इस मैच में टीम इंडिया को बड़ी आसानी से हरा दिया था। इस सीरीज़ के बाद टीम इंडिया ने श्री लंका के ख़िलाफ़ तीन टेस्ट मैचों की श्रृंखला के लिए गांगुली को टीम में रखा गया। परंतु अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद तीसरे टेस्ट मैच में गांगुली को फिर से ड्राप कर दिया गया। इस ख़बर को सुनकर गांगुली रोने लगे पड़े थे। बस फिर क्या था ? गांगुली के फैंस फिर से आग बबूला हो गए और एक बार फिर से सड़कों पर प्रदर्शन देखने को मिला। यहां तक कि पार्लियामेंट में भी इस बात की खूब चर्चा हुई।
इसके बाद पाकिस्तान और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ हुई श्रृंखलाओं में भी गांगुली को अंदर बाहर होना पड़ा। परन्तु वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ टेस्ट और वनडे दोनो से ही गांगुली को बाहर कर दिया गया था। इसी कॉन्ट्रोवर्सी के चलते टीम इंडिया 2006 की ICC चैंपियन ट्रॉफी में बुरी तरह हार गया था। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरीज में भी 0-4 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में गांगुली को वापिस बुला लिया गया जिसमें गांगुली ने बहुत शानदार प्रदर्शन कर सीरीज़ में सर्वाधिक रन बनाए। इस प्रदर्शन के चलते गांगुली को वेस्टइंडीज और श्री लंका के ख़िलाफ़ टीम में शामिल किया गया। इन दो सीरीज़ में भी गांगुली ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और श्री लंका के ख़िलाफ़ मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे।
चैपल के हद्द से ज्यादा एक्सपेरिमेंट्स ने किया खिलाड़िओं का करियर बर्बाद:
चैपल के कोच रहते टीम इंडिया में बहुत सारे एक्सपेरिमेंट किए गए थे। एक समय ऐसा भी था कि दर्शकों में से किसी को भी नहीं पता होता था कि कौन सा बल्लेबाज़ ओपनिंग करने आएगा कौन नंबर तीन पर आएगा या उसके बाद कौन आएगा ? कौन सा गेंदबाज गेंदबाज़ी की शुरुआत करेगा ? यह कहानी हर मैच में चलती थी। इस बात के जवाब में चैपल ने कहा था कि वो 2007 के विश्वकप के लिए टीम तराश रहें हैं। टीम इंडिया की पहचान होती थी कि वो हमेशा टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करना पसंद करती थी। लेकिन चैपल के कोच पद के दौरान ये रिवायत भी बदली और टीम इंडिया उस दौरान केवल लक्ष्य का पीछा करते हुए ही जीतने लगी थी और उसे टारगेट डिफेंड कर जीतना मुश्किल लगने लगा था। लेकिन जब 2007 विश्वकप शुरू हुआ तब टीम इंडिया ग्रुप स्टेज का अपना पहला मैच बांग्लादेश के हाथों हार गई। अब उसे बरमूडा और श्री लंका को हराना जरूरी हो गया था। बरमूडा के खिलाफ टीम इंडिया ने जबरदस्त बल्लेबाज़ी करते हुए 413 रनों के पहाड़ खड़ा कर दिया। उस मैच में भी गांगुली ने 87 रनों की पारी खेली थी। लेकिन अब बारी श्री लंका की थी। और उस मैच में टीम की करो या मरो वाली हालात थी। पर इस मैच में लक्ष्य का पीछा करने वाली अपनी ताकत के अनुरूप भी टीम इंडिया लंका के खिलाफ 255 रनों के लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई और 185 रनों पर ढेर हो गई। और इस विश्वकप की सबसे फेवरेट मानी जाने वाली टीम इंडिया का सफ़र यहीं समाप्त हो गया। इस विश्वकप के तुरंत बाद कोच ग्रेग चैपल ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उनके इस्तीफे के साथ ही समाप्त हो गया भारतीय क्रिकेट का वो काला अध्यय जिसने इरफ़ान पठान और सौरव गांगुली जैसे कई खिलाड़ियों का करियर समाप्त कर दिया था। इरफ़ान पठान भारतीय क्रिकेट का वो उभरता गेंदबाज़ था जिसने अपनी इनस्विंग गेंदबाज़ी से बड़े-बड़े बल्लेबाज़ों की नींद हराम कर के रख दी थी। लेकिन कोच चैपल ने इरफ़ान को ऑलराउंडर बनाने के चक्कर में टीम इंडिया की ओपनिंग बल्लेबाज़ी की ज़िम्मेवारी सौंप दी जिसके चलते इरफ़ान पठान की गेंदबाज़ी की इस कदर लय बिगड़ी की फिर कभी दोबारा वो उस रंग में नहीं दिख पाए और धीरे-धीरे वो उभरता सितारा छुपता चला गया। लेकिन ग्रेग चैपल का कोच पद से इस्तीफ़ा देते ही भारतीय क्रिकेट के इतिहास के काले अध्याय का भी अंत हो गया।

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