एक दिन मैं और मेरा छोटा भाई एक अपने किसी दोस्त से कुत्ते का एक छोटा सा पिल्ला ले आए । वह अभी इतना छोटा था कि उसकी आँखें भी नहीं खुली थीं । हमने उसका नाम शेरू रखा । उस दिन हमें घर से बहुत गालियाँ सुनने को मिलीं । क्योंकि पिताजी को जानवरों से बहुत नफरत थी । जब कभी भी शेरू घर में कहीं हग देता तो पिता जी तो हमारे पीछे राशन-पानी लेकर चढ़ जाते । शेरू एक पमेरियन नस्ल का कुत्ता था इसलिए उसके बाल बहुत लंबे थे । जब भी मां झाड़ू लगाया करती तो हमें बहुत सुनाया करती । हम भी बहुत
जिद्दी थे । बेईज्जती करवा करवा लिया करते थे पर टस से मस न ही हुआ करते थे । ख़ैर जैसे तैसे समय बीतता गया । अब शेरू बड़ा हो गया था।
एक दिन हमारे
घर मेहमान आए हुए थे । उनका छोटा सा बच्चा खेलते खेलते अचानक
गेट से बाहर चला गया । घर के सभी सदस्य एवं मेहमान आपस में बातें करने में व्यस्त थे । अचानक शेरु के भौंकने की आवाज आई । हम सभी ये सोचकर एकदम बाहर की ओर भागे की कहीं शेरू ने बच्चे को काट न लिया हो । लेकिन जब बाहर का नज़ारा देखा, तो उसने
सभी को चौंका दिया ।
दरअसल चार-पांच आवारा
कुत्ते बच्चे पर हमला करने के लिए आगे बढ़ रहे थे । परन्तु शेरू उस
बच्चे को बचाने के लिए अकेला ही उन कुत्तों के साथ जा भिड़ा । मारे डर के शेरू जोर-जोर से भौंकने लगा ताकि हम उसकी आवाज सुनकर
बाहर आ सकें । हमें देखकर शेरू का डर खत्म हो गया और वह उन आवारा कुत्तों पर टूट पड़ा । शेरू को उस दिन बहुत वाह-वाही मिली । लेकिन पिता
जी इससे ज्यादा प्रभावित नहीं हुए ।
कुछ दिनों बाद
एक और ऐसी घटना घटी जिसने पिता जी की सोच को भी बदल दिया । दरअसल, पिता जी रोज सुबह चार
बजे उठकर पूजा पाठ करते थे । एक दिन अचानक पता नहीं कैसे घड़ी का अलार्म नहीं बजा । जिस कारण पिता जी की आंख नहीं खुली । ये सब देखर पहले तो
शेरू पिताजी की चारपाई के आसपास घूम कर चूँ-चूँ करता रहा । फिर भी जब पिताजी की आँख नहीं खुलीं, तो उसने अगले पैर चारपाई पर रखकर पिता जी की चद्दर को खींचना शुरू कर दिया । पिता जी को बहुत गुस्सा आया । उन्होंने उसे दुत्कारकर चारपाई से नीचे धकेल दिया । लेकिन अचानक
जब पिता जी का ध्यान घड़ी की तरफ गया तो उन्होंने देखा कि साढ़े चार बज चुके थे ।
पिता जी समझ गए थे कि शेरू क्यों उनकी चद्दर को बार-बार खींच रहा था । पिता जी ने बड़े प्यार से शेरू के सिर को सहलाया । उस दिन के बाद जानवरों के प्रति पिता जी के मन में जो नफ़रत थी वो बिल्कुल खत्म हो गई । अब वे शेरू को सैर के लिए ले जाते और कभी-कभी उसे नहला भी देते । अब वे भी समझ चुके थे कि कुत्ते से ज्यादा वफादार कोई नहीं हो सकता ।

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