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कुत्ते की वफ़ादारी (कहानी)



कुत्ते को सबसे बुद्धिमान जानवर इंसान का सबसे वफादार दोस्त माना जाता है । इंसान धोखा दे सकता है, लेकिन यह जानवर नहीं वफादारी की ऐसी ही एक वास्तविक घटना मैं आप के साथ सांझा करने जा रहा हूं।

       एक दिन मैं और मेरा छोटा भाई एक अपने किसी दोस्त से कुत्ते का एक छोटा सा पिल्ला ले आए   वह अभी इतना छोटा था कि उसकी आँखें भी नहीं खुली थीं । हमने उसका नाम शेरू रखा   उस दिन हमें घर से बहुत गालियाँ सुनने को मिलीं   क्योंकि पिताजी को जानवरों से बहुत नफरत थी   जब कभी भी शेरू घर में कहीं हग देता तो पिता जी तो हमारे पीछे राशन-पानी लेकर चढ़ जाते   शेरू एक पमेरियन नस्ल का कुत्ता था इसलिए उसके बाल बहुत लंबे थे   जब भी मां झाड़ू लगाया करती तो हमें बहुत सुनाया करती   हम भी बहुत जिद्दी थे   बेईज्जती करवा करवा लिया करते थे पर टस से मस ही हुआ करते थे ख़ैर जैसे तैसे समय बीतता गया । अब शेरू बड़ा हो गया था 

      एक दिन हमारे घर मेहमान आए हुए थे   उनका छोटा सा बच्चा खेलते खेलते अचानक गेट से बाहर चला गया । घर के सभी सदस्य एवं मेहमान आपस में बातें करने में व्यस्त थे   अचानक शेरु के भौंकने की आवाज आई हम सभी ये सोचकर एकदम बाहर की ओर भागे की कहीं शेरू ने बच्चे को काट लिया हो   लेकिन जब बाहर का नज़ारा देखा, तो उसने सभी को चौंका दिया

    दरअसल चार-पांच आवारा कुत्ते बच्चे पर हमला करने के लिए आगे बढ़ रहे थे । परन्तु शेरू उस बच्चे को बचाने के लिए अकेला ही उन कुत्तों के साथ जा भिड़ा मारे डर के शेरू जोर-जोर से भौंकने लगा ताकि हम उसकी आवाज सुनकर बाहर आ सकें । हमें देखकर शेरू का डर खत्म हो गया और वह उन आवारा कुत्तों पर टूट पड़ा   शेरू को उस दिन बहुत वाह-वाही मिली । लेकिन पिता जी इससे ज्यादा प्रभावित नहीं हुए

   कुछ दिनों बाद एक और ऐसी घटना घटी जिसने पिता जी की सोच को भी बदल दिया   दरअसल, पिता जी रोज सुबह चार बजे उठकर पूजा पाठ करते थे   एक दिन अचानक पता नहीं कैसे घड़ी का अलार्म नहीं बजा जिस कारण पिता जी की आंख नहीं खुली ये सब देखर पहले तो शेरू पिताजी की चारपाई के आसपास घूम कर चूँ-चूँ करता रहा फिर भी जब पिताजी की आँख नहीं खुलीं, तो उसने अगले पैर चारपाई पर रखकर पिता जी की चद्दर को खींचना शुरू कर दिया पिता जी को बहुत गुस्सा आया उन्होंने उसे दुत्कारकर चारपाई से नीचे धकेल दिया । लेकिन अचानक जब पिता जी का ध्यान घड़ी की तरफ गया तो उन्होंने देखा कि साढ़े चार बज चुके थे

पिता जी समझ गए थे कि शेरू क्यों उनकी चद्दर को बार-बार खींच रहा था   पिता जी ने बड़े प्यार से शेरू के सिर को सहलाया   उस दिन के बाद जानवरों के प्रति पिता जी के मन में जो नफ़रत थी वो बिल्कुल खत्म हो गई । अब वे शेरू को सैर के लिए ले जाते और कभी-कभी उसे नहला भी देते । अब वे भी समझ चुके थे कि कुत्ते से ज्यादा वफादार कोई नहीं हो सकता

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